अचूक निशाने पर

अचूक निशाने पर गोली दागने के पहले
रह-रह कर दूध पीती विटिया
ख्याल आती है
और मैं फिर धंस जाता हूं
उसी व्यवस्था में
(जहां से निकलकर भागने की
(ना-)कामयाब कोशिश की थी मैंने)
सुबह-सुबह
आज मेहत्तर नाई ने
एक अच्छी बात कही-
दाढ़ी वनवाने के दौरान
अक्सर क्यों हम
मूछें भी साफ करवा लेते हैं ?
मैंने समझा कि वह
राजनीति पर बोल रहा है
पर उसने कहा कि
वह तो मर्दानगी पर बोल रहा है।
मैं क्या कहता
मुझे आने लगी शर्म
कि मर्दानगी क्यों नहीं है
मेरे पास ?
और मर्दानगी क्यों नहीं है
अपने राम देश के पास।
अगर यह बात नहीं
तो आखिर कौन-सी चीज है वह
जो अक्सर हमें रोकती है
कुछ करने को।
आखिर क्यों हम खाली बोतल में
डॉट की तरह हैं ?

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