चार स्थितियों से गुजरता : मैं


मैंने अपने चेहरे पर
सीमेंट के पसस्तर लगा लिये हैं
ताकि झेल सकूं लोहे के थप्पड़।
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मैंने अपनी आंखों में
पत्थर के चश्मे लगा लिये हैं
ताकि न देख सकूं पथरीली रोशनी
जो गड़रिये के घर से शुरू होकर
(शाम) सेठ के घर मुंह धोती है।
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मैंने अपे कानों में
फिट कर लिया है-डॉट
ताकि न सुन सकूं
सर्दीला मर्सिया गीत,
जो बिस्तर से शुरू होकर
बूढ़े कब्रिस्तान तक गूंजती है।
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मैंने अपने मुंह में ‘ब्लेक प्लेट’
ठोंक रखा है-
ताकि न गा सकूं रंभाते बछड़े के गीत
जो कोठार से शुरू होकर
ड्राइंगरूम तक पहुंचती है।

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