अपनी खेती और अपना पुश्तैनी धंधा
अपने गांव में ।
अपनी गृहस्थी और अपने पुरखों की गंध
अपने गाँव में।
अपनी सुखी रोटी और काँसे की थाली
अपने गाँव में ।
अपना बचपन का दोस्त बरगद और
इमली का पेड़
अपने गाँव में।
अपना कुलदेव और दादी के आँचल का छाँव
अपने गाँव में।
अपना तुलसी-चौरा और
अपने तीज-त्यौहार
अपने गाँव में।
अपना प्यारा जीवन और अपना मिट्टी-पानी
अपने गाँव में।
अरे,
नहीं जाएंगे शहर
उधारी छाँव में
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1 टिप्पणी:
Good Poems.I want to read it again and again.
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