बचपन

बचपन से कितनी दूर आ गया हूँ
कि अब लौटा नहीं जा सकता।
घुटनों के बल
चलते हुए बेटे को देखकर
फिर याद आया
बचपन।

माँ कहती है
मेरा बचपन
मेरे बेटे की तरह
जहाँ हमेशा सुबह ही सुबह होते।
तो क्या यह मेरा बचपन है
मेरे सामने

राजा-रानियों से जूझता मेरा बचपन
भूकम्प लाता मेरा बचपन
किताबें पढ़ता-फाड़ता मेरा बचपन
बचपन के कितना नजदीक आ गया हूं मैं
कि अब लौटा नहीं जा सकता
मूझे लगता है,
कि बचपन अब मेर घुटने में कैद है।

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