एक पेड़ है
हवा है
बारिश के पहले-
जो घोंसले हैं
हिल रहे हैं।
हिलता हुआ दिन है
हिलती हुई रात है।
उजाले कम्पास में भरकर दौड़ते हुए
अँधेरे से हाथ रँगे हैं
खामोशी की तरह ही
टूटे हैं कमीज़ के बटन।
जैसे, पूरा समय घड़ी से कूदकर
डगाल पर अटक गया हो
और डगाल कंगाल हो।
सब कुछ दिखता रहा
जैसे पहाड़ की तरह चिड़ियाँ
गिनती की तरह भविष्य।
हम अपनी उँगलियां गिनते हुए
पेड़ के नीचे खड़े रहे।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें