स्मृतियाँ

वह अपनी सड़ी स्मृतियों के भीतर
धीरे से पहुँचा
और वहाँ से निकाल लाया जूता।

जूते में पूरी की पूरी पृथ्वी थी
और जूते के ऊपर पैर
वह उन पैरों के सहारे
खड़ा होता रहा।

वह कहता है- “यह कैसी पृथ्वी है-
जहां जूते ही जूते
नजर आ रहे हैं।”

उसने सभी लोगों से कहा-
कि अपने-अपने जूते उतार लें
फिर उसने
पृथ्वी को चमड़े से ढंक देने की
इच्छा से
अपना जूता भी उतार दिया।

तब से उसने
अब तक जूते नहीं पहिने।

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