एलीफेण्टा गुफाओं की त्रिमूर्ति से
मिलाता रहा
अपना चेहरा
कहीं कुछ फर्क नहीं दिखा।
मैंने सेल्यूट की तरह ही
दाग दी हँसी।
मेरी हँसी बाजू खड़े जोड़े ने
चुरा ली,
मैं मूर्ति हो गया।
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(वरिष्ठ कवि भगतसिंह सोनी की कविता)
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