रहंचुली

फूलगोभी जइसन
अबादी वाला
मोर देस के कनिहा उप्पर
चढ़ गे हे
अंधियार के नार,
अंधियार के नार म लपटाये मनखे
अपन तेहरा ल हाथ म धर के
कथे
सइघ्घो हिन्दुस्तान
घेरी-बेरी
जीभ ह बताथे
के कतेक बड़ होथे
भूख के भविस,
अउ भविस के आंवर म
लपटाए (मनखे के)
जिए के ललक-
भूख के जंगल म
चिरई-चुरुगुन होगे,
अपने अंधियार के सत्तइसा ल टोरत
मय जान डारेंव
भीतरी रेंहे के सुख। राज
बेर-बेर
ये परजा-तंतर के
रहंचुली
म झूलत
अब मय जान डारेंव
चीन्ह डारेंव
बारूदी-कसीदा वाला
ठोनके / चीथे / हउहाए / चचुवाए
चेहरा,
एती-तेती
जात हवय गोड़
अउ गोड़ म बोइर के कांटा।
अइसनेच म
रांड़ी के पिलवा मन
ए कोलकी ले बुलक के
ओ कोलकी म जात हें
मय राजमारग नई बन सकेंव
अपनेच डेहरी म ठाढ़े-ठाढ़े
बिहनिच हो गेंव।
हाय दाई
का होगे मोला के
मोर लहू म घोरा गय
भेलाई,
रायपुर,
दिल्ली।
रोजेच,
एक ठन चरित्तर
भंदोई पहिन के अंधियारी पाख म आथे-
अंजोरी पाख
हमन बर
देवसुतनी अकादसी होगे।
बड़े फजर, बड़े फजर हो जाथे
फेर हमन विहानेच नई होय सकत
बिहान, सुरुज के पाछे हो जाथे।
अधियार के लोक-सभा,
पनही अऊ पांव के बीच्च के भुंइय्या
भुंइय्यां के भाखा म
मोर कविता-
एक ठन सुरुजमुखी पेड़।
हर बेर,
बेवस्था के खिलाफ जूझत मनखे
बेवस्था के कपार म टिकली बन के
रहि जाथे।

मोर देस, देस कम आय
सील जादा
हम मनखे मन पताल-मिरचा के चटनी अस
बिन नून के पिसावत हन
गनतंत्र के लोढ़िया में।
कइसे चलथे ये गनतंत्र के लोढ़िया (भकाभक)
हाथ,नइ जानव कइसे होगे हे चिरई
का हो जाहय ढलंग जाहय लोढ़िया
मंजा जाहय कजरहा
बगर जाहय फूल के रंग
खुल जाहय अकास के फइरका।

वो दिन
महानदी के फूल उप्पर ले निकलत रेहेंव
मोर चेहरा
महानदी मं गिरगे,
ओला बहुत खोजेंव
तभ्भोले नइ मिलिस,
बिहाने मय पंद्रा अगस होगेंव
सांझे छब्बीस जनावरी होगेंव।

अंधियार बिच्छी सरिख हो गे हे
सब्बोच कपाट म लग गे हे तारा
मय कहां जांव,
अब मय भविस ल
पान सरीख नइच्च तो चबाए सकंव,
तमाखू सरिख नइच्च तो खाए सकंव,
कब होहय हरेली,
कब होहय जवांरा
(घेरी-बेरी जारा मं छंउकत हंव अंधियार)
यहीत्तरा,
एक ठन सुआपांखी अंजोर
ल खोजत,
डेरी-जऊनी जात मोर पांव ।

अतेक बड़ सहर
कहूं चूरी म बंधाय
कहूं खोपा मं खोचाय हैं,
सक्कर अउ सुराज के गोठ
होथे अक्केच संग-
बपुरा मन
का कर सकथें
सिरिफ गोठियाए के.
जब ले डंगचगहा मन
बनें हें नेता
देखाथें जादू.
कुछ करे, गुने तो सकंय नहिं
उहीच्च ल फेर चुनथन
को जनी ये शहर क मनखे मन ला
का हो गे हे !

खेत मं नांगर जोतत फू्ल के रंग
हमन मं नई उतर सकय
नइ उतर सकय अकास के सरीर
घाम, अंजोर.
चोरहा हवा, करा अस जूड़ होगे हे
मनखे मन के सरीर, मरकी-दोहनी अस,
जम गेहे काई-कनटोप अस
का हो जाहय, उतर जाहय फूल के रंग
(मनखे में)
का हो जाहय उतर जाहय अकास के चुरी
का हो जाहय रद्दा-वाट मं बगर
जाहय घुप्प चेहरा.
अंधियार के नाक मं अंजोर के
फुल्ली पहिना जाहय। मनखे
तो का हो जाहय.
लगते सियान मन के गोठ सहींच रहिसे
“बुजापुत जनम के रेमटा मन ल जूड़ धरिस”
तो का कहंव । करवं
हम नाथ ल काटेच नइ सकन
लगथे हम अन अड़बड़ बेसरम हो गय हन
नइ फोरे सकन अकास के चूरी
नइ जानंव अब वो मछरी के पानी हवा कइसे होगे ?
केती हे वो धाम, बादर, अंजोर
केती है वो डुवा जेमा खोवत रेहेन
अकास, पिरिथिवी.

बेल के मनखे मन
बेंदरा सरिख हो गय हें
एक ठन सिहासिनी बेंदरिया
अपन हाथ मं
परजातन्त्र के लौड़ी ले
नाच नचावत हे
“नाच रे बेंदरा ! टुम्मक-ठम ,भई
ठुम्मक-ठुम।”

गणतंत्र ह अऊ ओकिया देइस
एक बेसरम अंधियार
मोर देश के कूबर उप्पर
एक ठन अऊ पहाड़.
कौन जानी किरन कोन कोती हो गेहे हिरन.
भइगे,
हमर मन बर रहि गे हे
एक ठन बूता
पेट पाटे के
अब आवत हे समझ मं
जिनगी जिये के नो हे
आय काटे के,
झख मारे वर जनमे हन
तब मारत हन
घरी-घरी एक ठन अलहन
जियत हन
टारत हन.
अपन जुग ल
खखौरी मं दाबे
ए कोलकी ले ओ कोलकी
किंजरत हंव.
सताब्दी ल तुतरू अस बजादत हंव
मोर बर अजादी ह
फुटहा हंड़िया हो गे हे,
जमाना ह कतेक बेर्रा ह गे हे
हमरे खाये
हमीं ल आंखी देखाथे.
हमरे सपना मं लग गे हे आगी
अऊ हरामी मन ओमा
चोंगी सिपचावत हें.

थर्मामीटर के पारा सरीख बरत
सहर के उदास अउ चपचपाए रद्दा मं
मय खोजत रेहेंव
मुसकान
मोर चप्पल के धुर्रा छड़ागे
मय
देखेंव
सब्बोच के चेहरा मं ठंगे है
मुरदाबली घाट के सन्नाटा
सन्नाटा भजकटइया के कांटा सरिख रहिस
वो चेहरा-बादर म हवईजहाज
उड़त रहिस
मय वोमा
नइ चढ़े सकेंच
मय खोजत रेहेंव मुसकान
रद्दा मं.

मोर मेर पहिली दू कान रहिसे
अब नइये.
नइ जानंव कइसे उड़ागे
हं, सिरिफ अतकेच जानथंव
वो दिन
अड़बड़ हवा-गर्रा आइस.
एक अइसनेच
हवा-गर्रा मोर भीत्तर घलोच्च
आइस वो ह गेड़ी म चढ़े रहिसे
मय ओख से पूछेंव
देस के हाल
वो कहिस-..............

मय एक कुनकुन मउसम म
चिरई रेहेंव
फेर अब मय चिरई नइ रहि गेंव
मउसम घलो नइ रहिगे कुनकुन
अब वोहा बज्जात हो गे हे।
मय
घोड़ा हो गेय हंव
मउसम ह निपोर देय हे दांत
मय ओखर दांत गिना सकथंव
दूबी अड़बड़ सुघ्घर चीज ए
मय ओला देखके
हिनहिना सकथंव।
मोर मेर बहुत अकन मया
अइसनेच नइ परे ए
मय ओला कहूंच फेंक या थूक
नइ सकंव
मय ओला कभू टोर या भांज
नइ सकंव

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