अचूक निशाने पर गोली दागने के पहले
रह-रह कर दूध पीती विटिया
ख्याल आती है
और मैं फिर धंस जाता हूं
उसी व्यवस्था में
(जहां से निकलकर भागने की
(ना-)कामयाब कोशिश की थी मैंने)
सुबह-सुबह
आज मेहत्तर नाई ने
एक अच्छी बात कही-
दाढ़ी वनवाने के दौरान
अक्सर क्यों हम
मूछें भी साफ करवा लेते हैं ?
मैंने समझा कि वह
राजनीति पर बोल रहा है
पर उसने कहा कि
वह तो मर्दानगी पर बोल रहा है।
मैं क्या कहता
मुझे आने लगी शर्म
कि मर्दानगी क्यों नहीं है
मेरे पास ?
और मर्दानगी क्यों नहीं है
अपने राम देश के पास।
अगर यह बात नहीं
तो आखिर कौन-सी चीज है वह
जो अक्सर हमें रोकती है
कुछ करने को।
आखिर क्यों हम खाली बोतल में
डॉट की तरह हैं ?
चार स्थितियों से गुजरता : मैं
मैंने अपने चेहरे पर
सीमेंट के पसस्तर लगा लिये हैं
ताकि झेल सकूं लोहे के थप्पड़।
000
मैंने अपनी आंखों में
पत्थर के चश्मे लगा लिये हैं
ताकि न देख सकूं पथरीली रोशनी
जो गड़रिये के घर से शुरू होकर
(शाम) सेठ के घर मुंह धोती है।
000
मैंने अपे कानों में
फिट कर लिया है-डॉट
ताकि न सुन सकूं
सर्दीला मर्सिया गीत,
जो बिस्तर से शुरू होकर
बूढ़े कब्रिस्तान तक गूंजती है।
000
मैंने अपने मुंह में ‘ब्लेक प्लेट’
ठोंक रखा है-
ताकि न गा सकूं रंभाते बछड़े के गीत
जो कोठार से शुरू होकर
ड्राइंगरूम तक पहुंचती है।
शीर्षकहीन
कानों में भोजली खोंसकर
अब मैं तुमसे कौन सा नाटक खेलूं ?
सरासर झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं होगा
इस जनतंत्र में अब कोई भी भविष्यवाणी
हस्तरेखाओं से मेल नहीं खाती
एक सीढ़ी,जो कुतुबमीनार की तरह है
योजनाओं की
खड़े होकर इन आंखों से देखा जा सकता है तमाम दृश्य
(जो खुल्मखुल्ला है)
घर से जो भिलाई बहुत नजदीक है-मेरे,
पेट के लिये दरवाजा नहीं खोल सकती
भाखरा यदि न भी भसके तो क्या
राशन बन सकेगा ?
सनसनाता हुआ एक गुच्छा अंधेरे का
मेरे सामने फेंक दिया है
जिस तरह
चिड़ियों के सामने फेंक दिया गया है
एक झोला
जिस पर महावीर छाप अगरबत्ती का विज्ञापन
और एक हद तक
जो राष्ट्रीय-ध्वज के तुल्य है
सब जगह है
एक सांप
जिसने आदमी का चेहरा पहन रक्खा था
मेर सामने मुस्कराता रहा
उसके लिए समझौते की उम्मीद करता
दुःख इस बात का
उस वक्त मेरे हाथों में पिस्तौल नहीं । केवल
राशन कार्ड था,
अभी-अभी ही एक चितकवरी गाय
मेर दरवाजे पर आयी है
बोलो, मैं उससे क्या कहूं ?
उड़नछू
मैंने घुसते ही जाना
कि वह है गेटवे ऑफ इण्डिया।
मैं उत्साहित होने ही वाला था
कि कर दिया गया
कबूतरों की उड़ान से
चौकन्ना।
कि वह है गेटवे ऑफ इण्डिया।
मैं उत्साहित होने ही वाला था
कि कर दिया गया
कबूतरों की उड़ान से
चौकन्ना।
त्रिमूर्ति
एलीफेण्टा गुफाओं की त्रिमूर्ति से
मिलाता रहा
अपना चेहरा
कहीं कुछ फर्क नहीं दिखा।
मैंने सेल्यूट की तरह ही
दाग दी हँसी।
मेरी हँसी बाजू खड़े जोड़े ने
चुरा ली,
मैं मूर्ति हो गया।
मिलाता रहा
अपना चेहरा
कहीं कुछ फर्क नहीं दिखा।
मैंने सेल्यूट की तरह ही
दाग दी हँसी।
मेरी हँसी बाजू खड़े जोड़े ने
चुरा ली,
मैं मूर्ति हो गया।
दूध गंध
नदियाँ अपने बिस्तरों पर पड़ी रहीं
मैंने जगाया नहीं उन्हें।
उन की आँखों में
मैंने नहीं देखा
दूध-घी
केवल खोलता हुआ लहू था
दूध गंध
फिर किधर से आई ?
मैंने जगाया नहीं उन्हें।
उन की आँखों में
मैंने नहीं देखा
दूध-घी
केवल खोलता हुआ लहू था
दूध गंध
फिर किधर से आई ?
चुनाव
मैंने हारकर
चुन लिया है एक सूखा वृक्ष
जिसकी जड़ें गई है धरती के छोरों तक
निकलेंगे ही एक दिन हरे पत्ते।
चुन लिया है एक सूखा वृक्ष
जिसकी जड़ें गई है धरती के छोरों तक
निकलेंगे ही एक दिन हरे पत्ते।
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